ग़ज़ल
( 122 122 122 122 )
अरकान- फ़ऊलुन फ़ऊलुन फ़ऊलुन फ़ऊलुन

ग़ज़ल नक्ल हो अच्छी आदत नही है।
कहे खुद की सब में ये ताकत नहीं है।।
है आसान इतना नहीं शेर कहना।
हुनर है क़लम का सियासत नही है।।
नहीं छपते दीवान ग़ज़लें चुराकर।
अगर पास खुद की लियाक़त नही है।।
हिलाता है दरबार में दुम जो यारों।
कहे सच ये उसमें सदाक़त नही है।।
जो डरता नहीं है सुख़नवर वही है।
सही बात कहना बगावत नही है।।
सभी खुश रहें बस यही चाहता हूँ।
हमारी किसी से अदावत नही है।।
दबाया है झूठों ने सच इस कदर से।
कि सच भी ये सचमें सलामत नही है।।
दरिंदे भी अब रहनुमा बन रहे हैं।
ये अच्छे दिनों की अलामत नही है।।
निज़ाम आज बिगड़ा है ऐसा जहाँ मे।
किसी की भी जाँ की हिफाजत नही है।।