दोहावली-1
(1)
पलक हया से झुक गई, पी का कर दीदार ।
हाय! नज़र जो मिल गई, छाई फ़िज़ा बहार ।।
(2)
वखत बुरा हो जाय तो, संग न कोई मीत ।
इक बिसात है जिंदगी, जीत सके तो जीत ।।
(3)
प्यास जहाँ तहॅ॔ जल नहीं, तहॅ॔ जल बरतन रीत ।
सोचत सोचत हर घड़ी, प्यासा जाए मीत ।।
(4)
धुआँ-धुआँ बदरी उड़ी, कर श्रावण श्रंगार ।
मीत प्रीत भटकत फिरी, रोवे असुअन धार ।।
(5)
तेरा मेरा मति करै, जग तेरा कुछ नाहि ।
यम मिलन जब होएगा, संग न कछु ले जाहि ।।
(6)
तुरपन रिशतों की भली, फिर-फिर सिलिए जाहि ।
षडयंत्रों के चालते, फिर-फिर उधड़त जाहि ।।
(7)
तेरा मेरा कुछ नहीं, परछाई ना संग ।
अंतिम मज़मा हट गया, फर-फर जरते अंग ।।
(8)
राधा के संग कृष्ण है, मीरा संग न कोय ।
राधा राधा सब रटै, मीरा कहे न कोय ।।
(9)
बालक हो छ: साल का, शाला नाम लिखाय ।
अक्षर गिनती सबहि कछू, शनै:शनै: पढ़ जाय ।।
(10)
राम रहीमन एक हैं, मत कर एक अनेक ।
बिच धरमन के भेद ना, मानुष मानुष एक ।।