निश्चय ही तुमसे मिल सकूँ

लुटे हुए मन में,
शांत बैठे तन में,
एक गांठ मैं दे सकूँ
हृदय के शूल को,
कदमों की भूल को,
मैं भूल सकूँ।

तो सत्य कहता हूँ प्रिये,
निश्चित ही तुम्हारे संग बैठकर
दिल की बात मैं कह सकूँ।
विक्षोभ मन का सह सकूँ,
एक बात तुमसे कह सकूँ
काश ! तुमसे मिल सकूँ।

अभावों के विद्वेष से,
मन के मलिन क्लेश से
यदि मैं स्वयं को मुक्त कर सकूँ,
तो निश्चय ही तुमसे मिल सकूँ ।

लुटे हुए पथिक प्रेम में,
शांत बैठे मन के श्लेष में
अश्रु विंदु को मोती कर सकूँ,
तो निश्चय ही तुमसे मिल सकूँ।

हृदय की संस्तुति में,
प्रणय पावन स्मृति में
वेदना को संगीत दे सकूँ
तो निश्चय ही तुमसे मिल सकूँ।

मृत्यु के यश गान को,
स्वयं के विचलित प्राण को
अमृत कलश मैं दे सकूँ
तो निश्चय ही तुमसे मिल सकूँ।

श्री अभिनव राज त्रिपाठी (20.03.2021)