सीखा है

तमस में दीप जलाना सीखा है
फ़राज से चंदा चुराना सीखा है।

मासूम से ही कुछ ख्वाब, हैं अपने
ख्वाबों को हमने सजाना सीखा है।

फूलों से भी प्यारी, हुई जिंदगी,
गमों को जबसे, भुलाना सीखा है।

नाज है विरासत में मिले रिश्तों पर,
अपनों पर हमने, इतराना सीखा है।

सिसकियाँ लिखीं है, जीस्त में तो क्या,
चिढ़ा जिंदगी को, गुनगुनाना सीखा है।

कोई नाराज न हो हमसे, इल्तजा इतनी,
शिद्दत से रूठों को, मनाना सीखा है।

जमाने से फिरती है बेगानी‘मल्लिका’
एक तुझको ही तो, रिझाना सीखा है।

कुमारी निधि चौधरी