मैं ही दुर्गा भवानी हूँ

कभी शबरी सी मैं निश्छल कभी झांसी की रानी हूँ।
मैं ही बेटी, मैं ही माँ हूँ, मैं ही दुर्गा भवानी हूँ ।
न मारो कोख में मुझको मैं तो गुड़िया सी प्यारी हूँ,
हूँ किस्सा मैं तेरा बाबा, कहानी भी तुम्हारी हूँ,
बुढ़ापे की तेरी लाठी, बनूँगी मैं भी भईया सी-
ज़रा सा नेह दे दो तो, मैं बेटों पर भी भारी हूँ,
नहीं डरना मेरे बाबा,तेरी लाडो सयानी हूँ ।।
मैं ही बेटी, मैं ही माँ हूँ, मैं ही दुर्गा भवानी हूँ।

अंधेरी रात सड़कों पर किसी ने था मुझे घेरा
कभी ज़िंदा जलाया तो, कभी नोचा है तन मेरा
नज़र डाली है जब तूने किसी मासूम बच्ची पर
हुई ना आंख नम तेरी, पसीजा दिल नहीं तेरा
बताऐ अंत जो तेरा मैं वो आकाश वाणी हूँ ।।
मैं ही बेटी, मैं ही माँ हूँ, मैं ही दुर्गा भवानी हूँ।

हवाओं को जो महका दूँ, मैं वो आँगन की तुलसी हूँ,
कि रहमत हूँ खुदा की मैं, तुम्हारे घर की लक्ष्मी हूँ।
पराया धन समझ कर तो विदा बाबा ने कर डाला
पराए घर से आई हूँ, यहां भी रोज़ सुनती हूँ।
मगर अपनाऐ जो सबको मैं वो गंगा का पानी हूँ ।।
मैं ही बेटी, मैं ही माँ हूँ, मैं ही दुर्गा भवानी हूँ।

बनूँ जब द्रोपदी तो युद्ध की ललकार हूँ सुन लो,
पढो जो तुम मुझे तो मैं, ही गीता सार हूँ सुन लो।
मैं सिंधु भी, मैं मीरा भी, मैं लवलीना भी बन जाऊं,
झुके ना ज़ुल्म के आगे, मैं वो तलवार हूँ सुन लो।
जो शत्रु जीत ना पाऐ मैं ऐसी राजधानी हूँ ।।
मैं ही बेटी, मैं ही माँ हूँ, मैं ही दुर्गा भवानी हूँ ।

कभी शबरी सी मैं निश्छल,कभी झांसी की रानी हूँ,
मैं ही बेटी, मैं ही माँ हूँ, मैं ही दुर्गा भवानी हूँ।

कुमारी निधि चौधरी