मनमोहिनी

मन को छू ले ऐसी है काया,
ऐसे ही फलती रहे देती है छाया।
तुझे बार बार मै देखूँ,
मन ही मन पुलकित हो जाऊँ।
तू जूही चम्पा चमेली
झूमे अमवा की डाली ।
नदियां बरखा तेरी सहेली,
हवाओं संग खेले अठखेली।
तू जीवन दान देती,
सुधा रस बरसाती।
हे मनमोहिनी तुझे,
कभी कलम से पिरोऊँ
कभी चित्रों से संवारु
मन को छू ले ऐसी है काया,
ऐसे ही फलती रहे देती है छाया।

श्रीमती प्रियंका त्रिपाठी (03.03.2021)